ग़ज़ल
ख़ुर्शीदुल हसन नय्यर
हैँ आबाद सब क़ैदख़ाने तेरे
यह आँखेँ तेरी ज़ुल्फो शाने तेरे
हुए रिंदो साक़ी दिवाने तेरे
शराबैँ तेरी बादह ख़ने तेरे
यह उशवा यह ग़मज़ा यह नाज़ो अदा
लुभाने के हैँ सब बहाने तेरे
बिछे जाते हैँ तायर-ए-इश्क़ ख़ुद
ख़ता कैसे होते निशाने तेरे
ग़ज़ल मैँ पढूँगा तो याद आएँगे
जवानी के सपने सुहाने तेरे
न होता मेरे ग़म का गर तज़केरा
न मशहूर होते फसाने तेरे
वही संगसारी मे शामिल हुए
जो अपने थे नय्यर बेगाने तेरे
Friday, April 3, 2009
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