Saturday, May 16, 2009

.ग़ज़ल: ख़ुर्शीदुल हसन नैय्यर

चमन में जो बहार है गुलों पे जो निखार है
तेरी निगाह का असर तेरे लबों का प्यार है
भिगो गई है जो फ़ज़ा हवा जो मुश्कबार है
ये ज़ुल्फ़े-यार की महक वो चश्म-ए-आबदार है
उफ़क़ पे जो धनक चढ़ी शफ़क़ का जो सिंगार है
यही है ओढ़नी का रंग, यही जो हुस्न-ए-यार है
न नींद आँख में रही न दिल पे इख़्तियार है
मेरे लिए भी क्या कोई उदास बेक़रार है
झुकी नज़र ख़मोश लब अदाओं में शुमार है
इन्हीं अदा-ए-दिलबरी पे जान-ओ-दिल निसार है
किसी से इश्क़ जब हुआ तो हम पे बात ये खुली
जुनूँ के बाद भी कोई मकाँ कोई दयार है
सुना कि बज़्म में तेरी मेरा भी ज़िक्र आएगा
तो ख़ुश हुआ कि दोस्तों में मेरा भी शुमार है
‘हसन’ की है ये आरज़ू कि उनसे जा कहे कोई
तेरी अदा पे जाने मन ग़ज़ल का इन्हेसार है

4 comments:

  1. Wah sir aap ne kamaal ki gazal kahi hai
    khas kar Ufaq wala sher bahut achha laga
    yahi oodhni ka rang yahi husn e yaar hai bahut sunder

    bahut bahut badhayi itni sunder gazal ke liye

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  2. Sharaddha jee

    yeh aap kee naz^ar kaa bas khulooS hai pyaar hai.

    bahut bahut shukriyah

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  3. bahut bahut shukriyah Kavi Kulwant jee. aap se isee tarah kee daad miltee rahegi.

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